गुजरात हाईकोर्ट ने 2010 की रेप FIR रद्द की — आरोपी नाबालिग, IPC की धारा 83 लागू
📅 ताजा अपडेट: गुजरात उच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक निर्णय में 2010 में दर्ज एक रेप केस की FIR को रद्द कर दिया है, जिसमें आरोपी मात्र 10 वर्ष का था। अदालत ने कहा कि पुलिस को IPC की धारा 83 की जानकारी नहीं थी, जो 7 से 12 साल के बच्चों के लिए लागू होती है।
⚖️ क्या है IPC की धारा 83?
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 83 के अनुसार, यदि कोई बच्चा 7 से 12 वर्ष की आयु के बीच है और उसमें यह समझ नहीं है कि वह क्या कर रहा है, तो उस पर अपराध का आरोप नहीं लगाया जा सकता।
📌 केस का पूरा विवरण
- घटना मई 2010 की है जब एक 10.5 वर्षीय लड़के पर 6 साल की बच्ची के साथ यौन शोषण का आरोप लगाया गया था।
- FIR में IPC की धारा 376 (बलात्कार), 354, 504, 114 शामिल थीं।
- पुलिस ने कोई फोरेंसिक जांच नहीं की कि बच्चा अपने कृत्य की गंभीरता समझता था या नहीं।
- कोर्ट ने कहा कि अभियोजन और पुलिस IPC की धारा 83 के प्रति जागरूक नहीं थे।
📜 अदालत का निर्णय
गुजरात हाईकोर्ट ने कहा कि बच्चा नाबालिग था और उस पर वयस्क की तरह मुकदमा चलाना न्याय की भावना के खिलाफ है। कोर्ट ने FIR को रद्द करते हुए आदेश दिया कि:
- बच्चे का नाम सभी रिकॉर्ड से हटाया जाए।
- मामले को पूरी तरह anonymise किया जाए।
📖 केस का महत्व
- यह निर्णय बताता है कि नाबालिगों के मामले में कानूनी समझ और प्रक्रिया की संवेदनशीलता जरूरी है।
- पुलिस और अभियोजन को बाल-अपराध से जुड़ी धाराओं की जानकारी होनी चाहिए।
🔗 कॉलम पढ़ें: IPC धारा 83 और बाल अपराध की कानूनी व्याख्या
इस विषय पर विस्तृत कानूनी कॉलम पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:
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🧒🏻 न्याय की निगाह में उम्र और समझ का महत्व सर्वोपरि है।